एक स्मृति, एक सवाल, एक चुप्पी का दस्तावेज़
कहानी जो सच और सपना दोनों है
"October Junction" दिव्य प्रकाश दुबे का एक मार्मिक उपन्यास है जो प्रेम, स्मृति और लेखन की जटिलताओं को दर्शाता है। पढ़िए एक आलोचनात्मक समीक्षा, स्त्री दृष्टिकोण और लेखकीय संघर्षों के साथ।
यह किताब एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि एक लेखकीय और भावनात्मक संघर्ष की यात्रा है। यह समीक्षा किताब की परतों को खोलते हुए चिरा और सुदीप की उस मुलाकात की पड़ताल करती है, जो अधूरी होकर भी सब कुछ कह जाती है।
पहली मुलाक़ात - किताब से नहीं, उसके असर से
सोशल मीडिया पर मैंने अक्सर देखा था भावुक रीलें, किताब की पंक्तियाँ, और “सुदीप और चित्रा” जैसे नाम जिनके बीच कुछ अधूरा सा था। लगा यह कोई रोमांटिक कथा होगी, शायद कुछ musafir café जैसा। लेकिन जब मैंने October Junction पढ़ना शुरू किया, तो मुझे एहसास हुआ कि यह सिर्फ़ अधूरे प्रेम की नहीं, बल्कि लेखन, पहचान, और स्मृति के संकट की कहानी है।
यह कहानी शुरू होती है एक लेखिका चित्रा पाठक से, जो एक पत्रकार सम्मेलन में यह घोषणा करती है कि उसने जो लोकप्रिय फिक्शन सीरीज़ "तीन पाट" लिखी, वह असल में सुरभि पराशर के नाम से थी — और उस पहचान के पीछे छिपा था एक और लेखक: सुदीप यादव।
यह कथानक नहीं, बल्कि एक meta-narrative है — कहानी के भीतर कहानी, जहाँ लेखक, लेखन और लेखकीय श्रेय पर सवाल उठता है। चित्रा और सुदीप की मुलाकात 10 अक्टूबर 2010 को बनारस में हुई थी। वही दिन, वही घाट, वही नाव, वही पहली बातचीत — सब कुछ स्मृति में अटका हुआ है। यह memory theory को सजीव करता है — कि स्मृति linear नहीं होती, वह दुहराव और अधूरेपन से बनी होती है।
📖 सुदीप: एक लेखक, एक प्रेमी, या एक ‘घोस्ट’?
सुदीप को हम एक successful tech entrepreneur के रूप में जानते हैं, लेकिन उसकी छवि धीरे-धीरे बदलती है। वह केवल एक 'ghostwriter' नहीं, बल्कि एक ऐसा व्यक्ति है जो शब्दों के ज़रिए अपने रिश्तों को परिभाषित करता है।
लेकिन सवाल उठता है :- क्या लेखन का श्रेय देने से कोई रिश्ता पूरा हो जाता है?
📖 चित्रा: नायिका नहीं, लेखिका
चित्रा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह केवल किसी की प्रेमिका नहीं, वह एक लेखिका है अपनी पहचान के लिए लड़ने वाली। वह चाहती है कि उसका चेहरा अख़बार में हो, वह ‘पेज 3’ सेलिब्रिटी नहीं, बल्कि एक महिला है जो अपने अस्तित्व की वैधता चाहती है।
यहाँ female agency की बात सामने आती है चित्रा अपनी आवाज़, अपनी कहानी, अपने choices की मालिक बनना चाहती है। लेकिन क्या समाज और सुदीप उसे ऐसा बनने देता है?
विषयवस्तु: प्रेम, स्मृति और लेखकत्व
पुस्तक सवाल पूछती है:-क्या कहानी लिखना ही लेखकत्व है, या उसे जीना भी ज़रूरी है?
चित्रा के लिए लेखक होना एक सामाजिक पहचान है, लेकिन सुदीप के लिए यह भावनात्मक पूर्ति। यह संघर्ष ‘who gets to tell the story’ का रूप लेता है — जिसे Michel Foucault के Author Function के संदर्भ में पढ़ा जा सकता है।
सुदीप की चुप्पियाँ और वापसी की कोशिशें कई बार emotionally manipulative लगती हैं। चित्रा को बार-बार रिश्ते में clarity की तलाश रहती है, लेकिन उसे ambiguity मिलती है। यह emotional labor की असंतुलित संरचना है — जहाँ स्त्री संवाद ढूँढती है, पुरुष चुप्पी।
October as Symbol
‘October’ इस कहानी में मौसम नहीं, मनःस्थिति है — वह समय जहाँ सबकुछ थम जाता है। ‘Junction’ केवल रेलवे स्टेशन नहीं, बल्कि वह बिंदु है जहाँ दो ज़िंदगियाँ टकराती हैं, लेकिन मंज़िलें अलग-अलग होती हैं।
“हमारी दो ज़िंदगियाँ होती हैं। एक जो हम हर दिन जीते हैं, और एक जो हम हर दिन जीना चाहते हैं।”
“कुछ कहानियों को बस जी लेना ही उनका लिख लेना होता है।”
ये पंक्तियाँ न केवल गूढ़ हैं, बल्कि लेखक और पाठक के बीच एक भावनात्मक पुल का काम करती हैं।
Junction नहीं, एक Mirror
October Junction मेरे लिए एक भावनात्मक दस्तावेज़ था। यह किसी प्रेम कहानी से ज़्यादा एक चेतावनी है कि हम अपने अधूरे रिश्तों को शब्दों से भरना चाहते हैं, लेकिन क्या हर शब्द में सच्चाई होती है?
यह उपन्यास हमें यह भी याद दिलाता है कि स्मृति कभी objective नहीं होती वह हमेशा किसी के द्वारा, किसी के लिए गढ़ी जाती है।
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